बाबा ने करवाया शिर्डी भ्रमण
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ॐ साई राम
ये मेरा और मेरे परिवार का अनुभव है जब हम शिर्डी गए थे। पिछले साल मकरसक्रांति (14 जनवारी 2007) पर मैं और मेरा पूरा परिवार शिर्डी गए थे। मेरी माँ ने बाबा को अर्पित करने के लिए कुछ तिल और गुड़ के लड्डू बनाये थे। हमें मंगल स्नान और काकड आरती में सम्मिलित होने के भी मौक़ा मिला और फिर हमने समाधि मंदिर में प्रसाद अर्पित किया और द्वारकामाई में लोगों को लड्डुओं का प्रसाद बाटा। उसके बाद हमारे पास केवल दो लड्डू बचे थे।
मेरी एक सहेली ने मुझे बाईजामाई के घर जाने की सलाह दी थी तो हमें वहाँ भी जाना था। हम द्वारकामाई के सामने वाले रास्ते से गए और बाइजामाई के घर से लक्ष्मीबाईजी का घर भी दिखाई पड़ता है। मगर हम इस बात से अनजान थे।
एक फ़क़ीर बाबा वहीं बैठे थे और उन्होंने हमें बताया की सामने वाला लक्ष्मीबाई जी का घर है और हम वहाँ पर भी गए और उन नौ सिक्कों का भी दर्शन किए जो बाबा ने लक्ष्मीबाई जी को दिए थे। हम सभी बहुत ख़ुश हुए मगर हमारे लिए और भी बहुत कुछ बाकी था । वो फ़क़ीर बाबा अपनी खुद की इच्छा से हमारे साथ आए और हमें मालसाहपती और माधवराओ देशपांडे जी की पोती का घर भी दिखाया।
मेरे पिता उस फ़क़ीर को उनके अच्छे काम के लिए पैसे देना चाहते थे, पर उन्होंने पैसे लेने से इंकार कर दिया और पैसे के बदले कुछ भोजन माँगा। हमारे पास तो कोई भोजन नहीं था और हमारा होटल भी काफ़ी दूरी पर था। मेरी माँ को उन दो लड्डुओं का याद आया और हमने वो लड्डू उन्हें दे दिए। लड्डू को पाकर वो काफ़ी प्रसन्न और तृप्त से प्रतीत हुए और वहाँ से चले गए। काफ़ी समय बाद हमें ऐसा प्रतीत हुआ की वो फ़क़ीर कोई और नहीं बल्कि हमारे साई बाबा थे, जिन्होंने स्वयं मनुष्य रूप में आकर हमारा प्रसाद स्वीकार किया। इस घटना से साबित होता है की बाबा अपने भक्तों से कितना प्यार करते हैं।
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Translated and Narrated By Rinki Transliterated By Supriya
© Sai Teri Leela - Member of SaiYugNetwork.com
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Experiences In Shirdi
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