राधाकृष्ण माई की योगिक शक्तियाँ
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Read in English: Yogic Powers of RadhaKrishna Maai
पिछला पद:
पिछली प्रविष्टि में, हम भक्त वामनराव पटेल, जो मुंबई के एक वकील थे, राधाकृष्ण माई के कुटिया में रहते थे। वे 11 महीने तक उनकी झोपड़ी में रहे और माई की योगिक शक्तियों के साक्षी बने। आज के प्रविष्ट में माई की शक्तियों का वर्णन है।
राधाकृष्ण माई द्वारकामाई की दीवारों को गोबर से लीप दिया करती थी और उसे हर समय सजाया रखती थी। बाबा विभिन्न उपहारों के प्रति तटस्थ थे। जो उपहार भक्तों ने उन्हें अर्पित किए, उन्हें सुरक्षित रखने की कभी परवाह नहीं की। माई ने इन प्रासादों (उपहारों) की रक्षा की। उन्होंने बाबा के दैनिक पूजा के लिए दीपक, घंटी, पूजा की थाली और अन्य आवश्यक वस्तुओं को संभाल कर रखा। हालांकि रामनवमी उत्सव का जश्न एक दशक पहले शुरू हो चुका था, माई के आने पर कई सुधार किए गए जैसे, नौ दिनों के लिए त्योहार मनाया जाना (हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के पहले दिन से शुरू होता है नौ दिन तक), भगवान राम के लिए पालना सजाना जो उनके जन्म को दर्शाता है, भजन करना, आदि वर्ष 1912 में शुरू हुआ।
सेवाओं में कोई हिस्सा नहीं
राधाकृष्ण माई बाबा की सेवा करते व्यक्त अन्य भक्तों की मदद लेटी थी, फिर भी कुछ कार्य ऐसे थे जिन्हें उन्होंने अकेले ही किया। वास्तव में, उन्हे कोई हस्तक्षेप सहन नहीं था। द्वारकामाई में दो मिट्टी के बर्तन थे जिसे वह हर दिन भरती थी, और सख्ती से कोई मदद स्वागत नहीं था। अगर किसी ने स्वेच्छा से मदद करने की कोशिश की तो उन्हें स्वीकार नहीं था। कब और कैसे घड़े भरे गए और किसने किया, इस पर किसी को ध्यान नहीं था। बाबा के भक्तों ने उस पानी को पवित्र जल के रूप में इस्तेमाल किया। कुछ लोगों ने गरीबी से छुटकारा पाने के लिए एक गिलास पानी भरा और अपने घरों में ले गए। दीक्षित वाडा (जो अभी भी मौजूद है) के पीछे एक कुआं था, और भक्तों का मानना था कि माई उस कुएं से अदृश्य रूप में उन मिट्टी के बर्तनों में पानी भरा करती थी। 1916 में, जब वामनराव पटेल राधाकृष्ण माई की कुटिया में रहते थे, तब वे एक बार सुबह 3 बजे उठे और इधर-उधर देखा पर माई नहीं दिखी। परेशान होकर उसने बाहर देखना शुरू किया, और उन्होंने माई को दीक्षित वाडा के पीछे के कुएं से पानी भरते हुए देखा। यह देखकर, वह उनके पास गए और मदद की पेशकश करते हुए कहा," कृपया मुझे आपकी मदद करने दीजिए"। इस पर, माई ने जवाब दिया, "तुम अपनी नींद पूरी करो, मुझे किसी मदद की ज़रूरत नहीं है"।पथ साफ या मैला
सुबह में एक बार वामनराव ने देखा की राधाकृष्ण माई सड़क साफ कर रही थीं और उन्हें कुत्ते, बिल्ली, घरेलू जानवरों के मल, कंकड़ आदि को उठाने में कोई हिचकिचाहट, घृणा या आलस्य महसूस नहीं हो रहा था। उसने सोचा - "मेरे बाबा के चरण कमाल इस जमीन को स्पर्श करेंगे, और जमीन उनके स्पर्श के लिए नरम होना चाहिए, और जो व्यक्ति इस भूमि की सफाई करे वो बहुत भाग्यशाली होगा, इसलिए मुझे भी ऐसे दिव्य कार्यों में योगदान देना चाहिए।" अगले दिन, वामनराव माई को बिना बताए जल्दी उठे और झाड़ू लेकर रास्ता साफ करने लगे। राधाकृष्ण माई को यह पसंद नहीं था कि कोई भी बिना उनके ज्ञान या अनुमति के किसी भी कार्य में हस्तक्षेप करे या स्वयं करे। इसलिए वामनराव का हस्तक्षेप उन्हें स्वीकार्य नहीं था। वामनराव रास्ता साफ करते करते कंकड़ और पत्थर एक तरफ करते हुए आगे बढ़ते रहे पर जब उन्होंने पीछे मुड़ कर देखा तो पाया कि पत्थर और मिट्टी अभी भी वहीँ पथ पर पड़े थे। वह बार-बार सफाई करते-करते थक गए, लेकिन पथ साफ नहीं हुआ। वो यह जानने में असफल रहे कि यह कैसे हो रहा था।कुछ दिनों के बाद जब काकासाहेब दीक्षित, बापूसाहेब बूटी, डॉ पिल्ले, राधाकृष्ण माई के साथ उनकी झोपड़ी में भोजन कर रहे थे तब तात्या पाटिल अपना एक अनुभव वर्णन कर रहे थे, ... “एक दिन मेरा राधाकृष्ण माई के साथ थोड़ी अनबन हो गयी थी और वह गुस्से में थी। उन्होंने अपना गुस्सा बहुत अजीब तरीके से निकाला। मैं घटना के बाद खेत में चला गया और काम में व्यस्त हो गया जब अचानक कंकड़ उड़ने लगे और मेरे टखनों पर चोट लगने लगा। मैं बुरी तरह से आहत था, लेकिन मैं यह नहीं पता लगा सका कि उन कंकड़ को कौन फेंक रहा था।! बाद में मुझे यकीन हो गया कि यह काम जादुई राधाकृष्ण माई का था!!! " इससे वामनराव को संकेत मिला कि यह राधाकृष्ण माई कि योगिक क्रिया थी जिसके चलते मार्ग को साफ नहीं किया जा सका क्योंकि उन्होंने माई से उस कार्य को करने की अनुमति नहीं ली थी। यह माई के लिए अस्वीकार्य था।
राधाकृष्ण माई को कसाक्षात्कार
रात हो गई और आकाश सितारों से जगमगा उठा। छावडी में शेज आरती समाप्त हुई, जब काकासाहेब के आठ वर्षीय पुत्र और बालासाहेब भाटे के दस वर्षीय पुत्र ने गायन शुरू कियासुन सुन रे भैया... रे भैया छड़ीदार मैं पाया... साईनाथ की छड़ी ऐ तीन लोक मे बबड़ी... साईंनाथ का घोड़ा, ऐ तिन लोक मे बड़ा... त्रिगुण शिखर पे जाना... वाहा साई नाम जपना... अलबेला सरका... र ... आराम कारो सरका...र...सभी बुजुर्गों ने बच्चों के साथ गाना सुहृ किया और "श्री सच्चिदानंद सदगुरु साईं नाथ महाराज की जय" के साथ गीत का समापन किया। सभी ने जमीन में झुककर विदाई दी और अपने-अपने घरों को रवाना हो गए। शिरडी मानो सन्नाटे में तल्लीन था; हालाँकि, जंगल में उपद्रव करने वाले लोमड़ियों को सुना गया, और कुत्तों की भौंकने की आवाज स्पष्ट रूप से सुनाई दे रहा था। जबकि दिन मानो सेवानिवृत्त हो चुका था, पर राधाकृष्ण माई भगवान के दर्शन के लिए बेचैन थी। उनकी तृष्णा के कारण उनका तेजी से धडक रहा था। एक हाथ की उंगलियाँ एकतारा पर बज रहे थे, जबकि दूसरी हाथ में राधाकृष्ण की नौ इंच की मूर्ति थी। उनके गले से सुनहरे शब्द बह रहे थे और उनके दिल को पूर्ण भक्ति में भिगो कर ध्यान की अवस्था में लीन हो गई थी।
प्यारे दर्शन दीजो, तुम बिन रहा न जाय। जल बिन कमल, चन्द्र बिन रजनी , ऐसे तुम देखयो बिन सजनी।। व्याकुल व्याकुल फिरूँ रात दीन, बिरह कलेजा खाय ! दिवस ना भूक, नींद नहीं रैना, मुख यूं कहत ना जावय बेहना! क्यूँ तरसाओ अंतर्यामी, आप मिलों कृपाकर स्वामी। मीरा दासी जन्म जन्म की, पूरी तुम्हारे प्यासी।।भजन समाप्त हो गया लेकिन राधाकृष्ण माई की उंगलियों एकतारा से चिपकी रही। उनकी आँखों से आंसू बहने लगे, इतने की उनकी साड़ी गीली कर दी। जब भगवान को इस तरह की गहरी भावनाओं के साथ बुलाया जाता है, तो वह अपने भक्त को दर्शन देने से इनकार नहीं कर सकते हैं और यही हुआ। “राधाकृष्ण माई की झोपड़ी हिलने लगी, राधाकृष्ण की मूर्ति में जीवन आ गई और सारा कुटिया दिव्य प्रकाश से भर गया।“ राधाकृष्ण की मूर्ति धीरे-धीरे लाल हो गई और इसने कुछ ही समय में सुलगते हुआ अंगारों का अवतार ले लिया। राधाकृष्ण माई की कुटिया से निकलने वाली रोशनी ने आधी रात के अंधेरे को दूर कर दिया। आग का एक शक्तिशाली अंगारा मूर्ति से निकल आया, जिससे झोपड़ी का तापमान बढ़ गया, इतना कि वामनराव सहन नहीं कर सके और वह बाहर भाग निकले। कुछ ही समय में सब कुछ सामान्य हो गया, और वमानराओ ने राधाकृष्ण माई को जमीन पर बेहोश पाया।
प्रिय पाठकों, अब तक आशा है कि आप समझ गए होंगे कि वामनराव पाटिल और कोई नहीं बल्कि स्वामी शरणआनंद ही हैं। साईं बाबा ने उन्हें राधाकृष्ण माई की कुटिया में रहने का निर्देश दिया, जहाँ उन्हें गंभीर परीक्षणों के लिए रखा गया था। उन्होंने कभी वापस जाने के बारे में नहीं सोचा और हमेशा बाबा के फैसले पर टीके रहे। पाठक, बाबा हाहारी भी परीक्षा लेटे हैं, क्योंकि वह हमें सबसे अधिक प्यार करते हैं, लेकिन हम इंसान अक्सर उन्हें सभी बुरी घटनाओं के लिए जिम्मेदार मानते हैं। हम परीक्षण के रूप में ऐसी स्थितियों को पहचानने में विफल हैं, जो केवल हमारे लिए उत्कृष्ट अवसर पैदा करेगा। आइए हम बाबा तक पहुंचने और उनके साथ हमेशा के लिए विलय होने के लिए हमारे भीतर इस तरह के धैर्य और स्थिरता का अभ्यास करने की कोशिश करें।
फिर से वामनराव पटेल की ओर
प्रविष्टि की कहानियों पर वापस आते हुए, एक दिन राधाकृष्ण माई ने कहा, " वमानया, अपने सिर को देखो, बहुत रूसी है। आज कहीं भी स्नान करने के लिए मत जाओ, मैं तुम्हें अरीठा के साथ उबला हुआ पानी से स्नान कराऊँगी। मैं आपके बालों को तेल लगाऊंगी और उन्हें कंघी करूँगी, ध्यान देना"। इतना कहते हुए, उन्होंने जल्दी से उबलने के लिए पानी रखा, उसमें अरीठा मिलाया और उसे तैयार होने के लिए कहा। माई ने उनके बालों और चेहरे को धोया, शरीर पर कुछ गिलास पानी डाला और फिर कहा, "तुम अब खुद नहाते रहो , मैं जल्दी से तुम्हारी कफनी धो दूंगा "। वामनराव ने जल्दबाजी में जवाब दिया, "नहीं नहीं माई मेरी काफनी को मत धोना, मेरे पास कोई दूसरा नहीं है, और इसे सूखने में शाम तक समय लगेगा क्योंकि यह मोटे कपड़े से बना हुआ है। कृपया मेरी कफनी को धोना नहीं"। माई ने उसकी बात नहीं मानी और जल्दबाजी में कफनी धोने चली गई और वामनराव के नहर कर लौटने से पहले सूखी कफनी लेकर लौट आई । विस्मय की बात थी, कफ़नी सूखा था!!! मोटे कपड़े से बनी, सूखी कफ़नी को पकड़े हुए, यह उस रात की घटना की याद दिलाई जब राधाकृष्ण माई के हाथ जीवित अंगारे से भरे थे। उन्होंने अपने पूरे दिल में सम्मान के साथ माई को नमन किया।मुझे यहाँ रुकना चाहिए क्योंकि राधाकृष्ण माई की शक्तियों को दर्शाने वाली कुछ और घटनाएं हैं । मैं उन्हें अगले हफ्ते की प्रविष्टि में उल्लेख करूंगी।
विन्नी माँ ने राधाकृष्ण माई के जीवन के बारे में एक बहुत ही दिलचस्प वीडियो साझा किया है, जो नीचे साझा किया गया है। कृपया इस पोस्ट को अपने दोस्तों और परिवार के साथ साझा करें और यूट्यूब चैनल (पोस्ट के अंत में उपलब्ध कराए गए लिंक) को भी लाइक करें
Sai Baba's Devotee Speaks Sai Yug Network
स्रोत: साईं सरोवर से अनुवादित
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© Sai Teri Leela - Member of SaiYugNetwork.com
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